Saturday, May 26, 2012

“तिरंगे को पैरोँ तले रौँदा था RSS. ने”



"RSS ने आज़ादी की लड़ाई में जनता की भावनाओं का साथ नहीं दिया"


बीजेपी क्यों आज इतनी ज्यादा राष्ट्रप्रेम की बात करती है ? उत्तर स्पष्ट है. इसलिए कि बीजेपी के मातृ संगठन, आर एस एस ने आज़ादी की लड़ाई में कभी भी हिस्सा नहीं लिया था. 1930 और 1940 के दशक में जब आज़ादी की लड़ाई पूरे उफान पर थी तो आर एस एस का कोई भी आदमी या सदस्य उसमें शामिल नहीं हुआ था. यहाँ तक कि जहां भी तिरंगा फहराया गया, आर एस एस वालों ने कभी उसे सैल्यूट तक नहीं किया. आर एस एस ने हमेशा ही भगवा झंडे को तिरंगे से ज्यादा महत्व दिया. 30 जनवरी 1948 को जब मोहनदास गाँधी की हत्या कर दी गयी तो इस तरह की खबरें आई थीं कि आर एस एस के लोग तिरंगे झंडे को पैरों से रौंद रहे थे. यह खबर उन दिनों के अखबारों में खूब छपी थीं आज़ादी के संग्राम में शामिल लोगों को आर एस एस की इस हरकत से बहुत तकलीफ हुई थी. उनमें जवाहरलाल नेहरू भी एक थे. 24 फरवरी को उन्होंने अपने एक भाषण में अपनी पीडा को व्यक्त किया था. उन्होंने कहा कि खबरें आ रही हैं कि आर एस एस के सदस्य तिरंगे का अपमान कर रहे हैं. उन्हें मालूम होना चाहिए कि राष्ट्रीय झंडे का अपमान करके वे अपने आपको देशद्रोही साबित कर रहे हैं.
यह तिरंगा हमारी आज़ादी के लड़ाई का स्थायी साथी रहा है जबकि आर एस एस वालों ने आज़ादी की लड़ाई में देश की जनता की भावनाओं का साथ नहीं दिया था. तिरंगे की अवधारणा पूरी तरह से कांग्रेस की देन है. तिरंगे झंडे की बात सबसे पहले आन्ध्र प्रदेश के मसुलीपट्टम के कांग्रेसी कार्यकर्ता पी वेंकय्या के दिमाग में उपजी थी. 1918 और 1921 के बीच हर कांग्रेस अधिवेशन में वे राष्ट्रीय झंडे को फहराने की बात करते थे. महात्मा गाँधी को यह विचार तो ठीक लगता था लेकिन उन्होंने वेंकय्या जी की डिजाइन में कुछ परिवर्तन सुझाए. मोहनदास गाँधी की बात को ध्यान में रहकर दिल्ली के देशभक्त लाला हंसराज ने सुझाव दिया कि बीच में चरखा लगा दिया जाए तो ज्यादा सही रहेगा. मोहनदास गाँधी को लालाजी की बात अच्छी लगी और थोड़े बहुत परिवर्तन के बाद तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार कर लिया गया. उसके बाद कांग्रेस के सभी कार्यक्रमों में तिरंगा फहराया जाने लगा. अगस्त 1931 में कांग्रेस की एक कमेटी बनायी गयी जिसने झंडे में कुछ परिवर्तन का सुझाव दिया. वेंकय्या के झंडे में लाल रंग था. उसकी जगह पर भगवा पट्टी कर दी गयी. उसके बाद सफ़ेद पट्टी और सबसे नीचे हरा रंग किया गया. चरखा बीच में सफ़ेद पट्टी पर सुपर इम्पोज कर दिया गया. मोहनदास गाँधी ने इस परिवर्तन को सही बताया और कहा कि राष्ट्रीय ध्वज अहिंसा और राष्ट्रीय एकता की निशानी है.
आज़ादी मिलने के बाद तिरंगे में कुछ परिवर्तन किया गया. संविधान सभा की एक कमेटी ने तय किया कि उस वक़्त तक तिरंगा कांग्रेस के हर कार्यक्रम में फहराया जाता रहा है लेकिन अब देश सब का है. उन लोगों का भी जो आज़ादी की लड़ाई में अंग्रेजों के मित्र के रूप में जाने जाते थे. इसलिए चरखे की जगह पर अशोक चक्र को लगाने का फैसला किया गया. जब मोहनदास गाँधी को इसकी जानकारी दी गयी तो उन्हें ताज्जुब हुआ. बोले कि कांग्रेस तो हमेशा से ही राष्ट्रीय रही है. इसलिए इस तरह के बदलाव की कोई ज़रुरत नहीं है. लेकिन उन्हें नयी डिजाइन के बारे में राजी कर लिया गया.
 ज्ञात हो कि बीजेपी की मालिक आर एस एस के मुख्यालय पर 2003 तक कभी भी तिरंगा झंडा नहीं फहराया गया था. वो तो जब 2004 में तत्कालीन बीजेपी की नेता उमा भारती तिरंगा फहराने कर्नाटक के हुबली की ओर कूच कर चुकी थीं तो लोगों ने अखबारों में लिखा कि हुबली में झंडा फहराने के साथ साथ उमा भारती को नागपुर के आर एस एस के मुख्यालय में भी झंडा फहरा लेना चाहिए. तब जाकर आर एस एस ने अपने दफ्तर पर झंडा फहराया.
-          लेखिका नीलाक्षी सिंह अपनी बेबाक लिखावट के लिए जानी जाती हैं ! इलाहाबाद में रहने वाली नीलाक्षी फ़िराक गोरखपुरी के शेर- हो जिन्हे शक, वो करें और खुदाओं की तलाश / हम तो इन्सान को दुनिया का खुदा कहते हैं को अपनी फिलोसोफी मान कर सभी धर्मो की रूढ़िवादिता पर अक्सर अपने कलम से प्रहार करती है, उनसे nilakshi45@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है .

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